आनन्दमय जन्मदिवस के लिए सिद्धयोग यन्त्र :
गुरुमाई चिद्विलासानन्द की ओर से एक उपहार

आनन्दमय जन्मदिवस के लिए सिद्धयोग यन्त्र का परिचय
अमी बन्सल द्वारा लिखित
यन्त्र एक पावन आकृति है जो मन को स्थिर करने के लिए एक केन्द्रण की भाँति कार्य करती है। इस यन्त्र की रचना गुरुमाई चिद्विलासानन्द ने की है। यह उन सभी के लिए श्रीगुरुमाई का उपहार है जो आनन्दमय जन्मदिवस अर्थात् श्रीगुरुमाई के जन्मदिवस-माह,…आगे पढ़ें जून के उत्सव के दौरान सिद्धयोग पथ की वेबसाइट देख रहे हैं।
यन्त्र
प्राचीन काल में, भारत में योगियों को गहरे ध्यान में यन्त्रों की तेजोमय व स्पन्दायमान आकृतियाँ दिखाई देती थीं। यन्त्र परम चिति के आनन्दपूर्ण, स्वतन्त्र इच्छाशक्ति के विकास-क्रम को चित्रित करता है जो उन असंख्य रंगों, ध्वनियों और रूपाकारों का सृजन करती है जिनसे ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है। यन्त्र परम चिति के उस प्रत्यावर्तन [अर्थात् लौटना] को भी चित्रित करता है जब परम चिति अपने मूल स्रोत की ओर लौटती है। इसके अतिरिक्त, यन्त्र किसी विशिष्ट दैवत की या परम आत्मा के किसी विशिष्ट पहलू की शक्ति का मूर्तरूप भी होता है।
संस्कृत भाषा के शब्द, ‘यन्त्र’ का शाब्दिक अर्थ है ‘उपकरण’। ‘यम्’ का अर्थ है ‘धारण करना, पोषण करना या सहारा देना’ और ‘त्र’ का अर्थ है ‘रक्षा करना।’ अतः यन्त्र वह उपकरण या साधन है जो उस विशिष्ट दैवत की दिव्य शक्ति को धारण करता है और यन्त्र पर ध्यान करने वाले की रक्षा करता है। यन्त्र, साधक के बोध को मन से हृदय में व साकार से निराकार तक ले जाता है।
यन्त्र के घटक
भूपुर
परम्परागत रूप में, यन्त्र एक भूपुर के अन्दर स्थित होते हैं जोकि एक वर्ग होता है जिसमें चार द्वार होते हैं। भूपुर का शाब्दिक अर्थ है ‘गृह’ या ‘पृथ्वी का गृह या क्षेत्र।’ भूपुर एक सीमा प्रदान करता है और एक पात्र की तरह कार्य करता है जिसमें यन्त्र की शक्ति धारित रहती है। यह भौतिक जगत और मानव-शरीर, दोनों को दर्शाता है जिनके अन्दर आध्यात्मिक जगत प्रकट होता है।
कमल
कमल शुद्धता और आध्यात्मिक विकास का सर्वमान्य प्रतीक है। ‘कमल’ संस्कृत भाषा का शब्द है। कमल शब्द के परम्परागत विश्लेषण के अनुसार, ‘क’ अक्षर का अर्थ है ‘वैभव’ या ‘तेज’ और ‘मल्’ का अर्थ है ‘थामे रखना’ या ‘अधिकार में रखना।’ किसी यन्त्र में, कमल ऊर्जा के उस केन्द्र को दर्शाता है जो प्रकाश व मन्त्रों की दिव्य ध्वनियों से निरन्तर स्पन्दित रहता है। जब साधक यन्त्र पर ध्यान करता है तो कमल उन्मीलित होता है और साधक के बोध को हृदय में ले जाता है।
आनन्दमय जन्मदिवस के सिद्धयोग यन्त्र में दो कमल हैं—सप्तदल कमल और अष्टदल कमल।
सप्तदल कमल
आनन्दमय जन्मदिवस के सिद्धयोग यन्त्र के मध्य में एक सप्तदल कमल है। यह कमल भगवान श्रीगणेश के आकार का है जो इस यन्त्र के देवता हैं। भगवान श्रीगणेश परब्रह्म का वह रूप हैं जो नए आरम्भों का प्रतीक और सर्वविघ्नविनाशक है। श्रीगणेश कि आकृति, ॐ की भाँति है जो आदि ध्वनि का प्रतीक है। इस प्रकार, उन्हें आदि ध्वनि ॐ का मूर्तरूप माना जाता है। इस कमल के सप्तदल या सात पंखुड़ियाँ, भारतीय संगीत प्रणाली के सात स्वरों की प्रतीक हैं जिनका उदय ॐ से हुआ है।
कुछ शैव ग्रन्थों में ‘सात’ का अंक परमेश्वर की अनुग्राहिका शक्ति, श्रीगुरु का द्योतक है। ये शास्त्र कहते हैं, भगवान शिव के छ: रूप हैं और इन सभी के परे हैं, ‘श्रीगुरु’—सातवें शिव, परमशिव, वे परब्रह्म जो साकार रूप धारण करते हैं। सिद्धयोग पथ पर शक्तिपात दीक्षा के माध्यम से श्रीगुरु की कृपा का अवतरण, जिज्ञासु को मोक्ष तक ले जाने वाली आध्यात्मिक यात्रा के आरम्भ का सूचक है।
अष्टदल कमल
आठ का अंक सर्वव्यापिनी शक्ति, देवी का पवित्र अंक है, वह शक्ति जो प्रत्येक प्राणी में निहित प्राणशक्ति है।
शास्त्रों के अनुसार, सूक्ष्म शरीर के ऊर्जा केन्द्रों में से एक है हृत् चक्र या हृदय चक्र, अष्टदल हृदय-कमल। हृदय-कमल, भौतिक हृदय के क्षेत्र में स्थित है और यह ज्योतिर्मय आत्मा का स्थान है। यह विशुद्ध हृदय-कमल अहैतुक प्रेम से स्पन्दित है।
५४ हृदयों का वृत्त
यन्त्र में वृत्त, शक्ति के रचनात्मक बल के उत्तरोत्तर विकास-क्रम और प्रत्यावर्तन को दर्शाता है।
यौगिक दर्शन में ५४ का अंक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह अत्यन्त शुभ अंक १०८ का आधा है। इसके अतिरिक्त, संस्कृत भाषा की वर्णमाला के वर्ण भी ५४ ध्वनि स्पन्दनों से बने हैं। जपमालाएँ भी परम्परागत रूप से १०८ मनकों से बनती हैं या इस पवित्र अंक के विभाजन से बनती हैं, जैसे—५४, ३६, २७ या ९।
सहस्रार
हृदयों के वृत्त के अन्दर कोमल पंखुड़ियाँ सहस्रार को दर्शाती हैं जो कि सूक्ष्म शरीर का उच्चतम केन्द्र है और आध्यात्मिक यात्रा का चरम बिन्दु है। सहस्रार का शाब्दिक अर्थ है, ‘प्रकाश की सहस्रों किरणें’ और भारतीय शास्त्रों में इनका वर्णन ‘सहस्रदल कमल’ के रूप में किया गया है जो परम चेतना के अनन्त तेज का प्रतीक है।
नीलबिन्दु
संस्कृत शब्द “नील” का अर्थ है ‘नीले रंग का’, और “बिन्दु” शब्द दर्शाता है ‘केन्द्र-बिन्दु’ को। इसकी अतुलनीय दीप्ति के कारण ही बाबा मुक्तानन्द ने इसका वर्णन ‘नीलबिन्दु’ के रूप में किया है। यह अन्तरात्मा का निवास-स्थान है और हमारी सत्ता की प्राणशक्ति का स्रोत है।
अपनी आत्मकथा, ‘चित्शक्ति विलास’ में बाबा मुक्तानन्द ने ध्यान में नीलबिन्दु के दर्शन का वर्णन किया है। बाबा जी लिखते हैं :
उस ऊर्ध्वाकाश में मैं बादल के धुएँ जैसा दिव्य तेज देखता और उस तेज के मध्य में नीलबिन्दु दिखाई देता। वह तेज नित्यप्रति बढ़ने लगा। उस नील के आस-पास सर्वत्र यह तेज है। ऐसा समझा जाता है कि सहस्रार आकाश का तेज इस बिन्दु की महिमा पर आश्रित है। उसे नील से ही तेज प्राप्त होता है। रोज़ यही ध्यान। नित्यप्रति ध्यान में ‘आत्माहम् इति’ [मैं आत्मा हूँ] वृत्ति का उदय होता था।”१
आमन्त्रण
यह सिद्धयोग यन्त्र ध्यान करने का एक साधन है। आप आमन्त्रित हैं कि आनन्दमय जन्मदिवस के प्रत्येक दिन, समय नियत कर, आप सिद्धयोग पथ की वेबसाइट को देखें और इस पवित्र छवि पर ध्यान करें—यह आपके लिए श्रीगुरुमाई का उपहार है।
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